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छठ के पारम्परिक गीतों की गूंज, नहाय खाय से महापर्व की शुरूआत

धर्म नगरी काशी में लोक आराधना के महापर्व डाला छठ की सुगंध गांव-शहर की गलियों से लेकर पॉश कालोनियों में महसूस हो रही है। घरों में शुद्ध देशी घी में ठेकुआ प्रसाद घर की बुर्जुग महिलाओं की देखरेख में तैयार किया जा रहा है।

गांव और कस्बे में महिलाएं शुद्धता को लेकर खुद पत्थर के जाते में आटा पीस कर प्रसाद तैयार कर रही है। पारम्परिक छठ पर्व के गीत ‘कांच ही बांस के बहंगिया-बहंगी लचकत जाये’, हो दीनानाथ, हे छठी मइया, केलवा जे फरेला घवद से, आदित लिहो मोर अरगिया, दरस देखाव ए दीनानाथ, उगी ए सुरूज देव की गूंज घरों के आंगन में गूंज रही है। छठ माता के गीतों को गुनगुनाते हुए महिलाओं ने पूरे आस्था के साथ संतान प्राप्ति और संतान की मंगल कामना के लिए चार दिवसीय छठ व्रत की शुरूआत सोमवार को नहाय-खाय से की। पहले दिन स्नान ध्यान के बाद व्रती महिलाओं ने भगवान भास्कर और छठ माता की आराधना की।

शाम को मिट्टी के चूल्हे पर नये अरवा चावल का भात, चने का दाल, कद्दू की सब्जी बना कर छठी मइया को व्रती महिलाएं भोग लगायेंगी। शाम को इसे प्रसाद के रूप में वितरण कर स्वयं भी ग्रहण करेंगी। मंगलवार को खरना के दिन व्रती महिलाएं दिन भर निर्जल उपवास रखकर छठी मइया का ध्यान करेगी। संध्या समय में स्नान कर छठी मइया की पूजा विधि विधान से करने के बाद उन्हें रसियाव, खीर, शुद्ध घी लगी रोटी, केला का भोग लगायेंगी। फिर इस भोग को स्वयं खरना करेंगी। खरना के बाद सुहागिनों की मांग भरकर उन्हें सदा सुहागन रहने का आर्शिवाद देंगी।

इसके बाद खरना का प्रसाद वितरित किया जायेगा। फिर 36 घंटे का निराजल कठिन व्रत शुरू होगा। व्रत में तीसरे दिन बुधवार को महिलाएं छठ मइया की गीत गाते हुए सिर पर पूजा की देउरी रख गाजे बाजे के साथ सरोवर नदी गंगा तट पर जायेगी। यहां समूह में छठ मइया की कथा सुन अस्ताचलगामी सूर्य को अर्घ्य देकर घर लौटेगी। चौथे दिन गुरूवार को उदयाचलगामी सूर्य को अध्र्य देकर व्रत का पारण करेंगी।

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