फर्रुखाबाद : मानस विद्धानो ने राम सीता की तरह आदर्श वादी बनने पर जोर दिया। श्री राम सीता ने इस धरती पर अवतार लेकर मर्यादा का पालन करके आदर्श प्रस्तुत किया। पाण्डेश्वर नाथ मंदिर में चल रहे मानस सम्मेलन के तीसरे दिन डा0 रामबाबू पाठक के संयोजन में आगरा से आयी मानस कोकिला सुश्री राधा शर्मा ने सीता चरित्र प्रसंग पर कहा कि माता सीता ने रामचरित मानस में एक आदर्श स्थापित किया। वह भक्ति की प्रतिमूर्ति है। श्री राम, लक्ष्मण पुष्प वाटिका में जाते है और सीता भी अपनी अष्ठ सखियों के साथ माता पार्वती की आराधना करने जाती है। श्री राम व सीता का आमना-सामना होता है और दोनो एक दूसरे को देखते है। श्री राम गुरु द्वारा मंगवाये फूल चुनकर ले जाते है। सीता सखियों के साथ माता पार्वती की आराधना पूजन कर श्रीराम को वर के रुप में माँगती है।
बनारस से आये मानस मनोहर रितेश रामायणी ने जलंघर प्रसंग पर आगे कहा कि भगवान शंकर अपने अवतार जलंघर से कई बार युद्ध हार जाते है। देवताओं के आग्रह पर भगवान विष्णु जलंघर का रुप धरकर सती वृन्दा का स्पर्श कर उसकी सतीत्व नष्ट कर देते है। उघर युद्ध में जलंघर मारा जाता है। वृन्दा विष्णु को पत्थर का हो जाने का श्राप देती है, विष्णु सालिगराम हो जाते है। लक्ष्मी वृन्दा को वन की तुलसी होने का श्राप देती है। वृन्दा लक्ष्मी को श्राप देती है जब मेरा पति जलंघर रावण के रुप में अवतार लेगा तब तुम्हे सीता के रुप में हाथ पकड़कर अपहरण करेगा इस प्रकार भगवान शंकर व भगवान विष्णु मिलकर लीला करके जगत का कल्याण करते है।
कानपुर से आयी मानस कोकिला ज्ञान गंगा ने श्री राम सीता के जन्म के प्रसंग पर कहा कि मनु-सतरुपा ने भगवान विष्णु की तपस्या की तपस्या जब पूरी हुई तो यह वरदान मांगा कि आप दोनो मेरे पुत्र व पुत्र वधू के रुप में जन्म ले श्रेता युग में मनु-सतरुपा ने राजा दशरथ व माता कौशल्या के रुप में जन्म लिया। राजा दशरथ के पुलश्री राम तथा राजा जनक की पुत्री सीता हुई। संचालन ब्रजकिशोर सिंह व पं0 रामेन्द्र मिश्र ने किया। तबले पर संगत गोविन्द पाठक ने की। मानस प्रेमियों में ध्रुवनारायन पाण्डे, अशोक रस्तोगी, ज्योति स्वरुप अग्निहोत्री, रामवरन दीक्षित, सुरजीत पाठक वन्टू, माण्डवी पाठक, रचना श्रीवास्तव, गीता चतुर्वेदी, रुपा मिश्रा, काली चरन, बालकृष्ण आदि सैकड़ों श्रोता मौजूद रहे।
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