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उत्तर प्रदेश में आज थम जायेगा दूसरे चरण का चुनाव प्रचार

UP Election news उत्तर प्रदेश में 18वीं विधानसभा के गठन के लिये सात चरण में हो रहे चुनाव के दूसरे चरण की 55 सीटों पर शनिवार को शाम छह बजे चुनाव प्रचार थम जायेगा। इस चरण में अधिकांश सीटें मुस्लिम और दलित बहुल होने के कारण रूहेलखंड का यह इलाका समाजवादी पार्टी (सपा) और बहुजन समाज पार्टी (बसपा) का गढ़ रहा है।
निर्वाचन नियमों के तहत दूसरे चरण में पश्चिमी उत्तर प्रदेश के 09 जिलों की 55 विधानसभा सीटों पर 14 फरवरी को होने वाले मतदान से 48 घंटे पहले चुनाव प्रचार आज शाम छह बजे रोक दिया जायेगा। दूसरे चरण के चुनाव वाले नौ जिलों में पश्चिमी उत्तर प्रदेश के अमरोहा, सहारनपुर और बिजनौर जिले शामिल हैं, जबकि रूहेलखंड के रामपुर, संभल, मुरादाबाद, बरेली, बदायूं और शाहजहांपुर जिले हैं।
उल्लेखनीय है कि चुनाव आयोग द्वारा आठ जनवरी को घोषित चुनाव कार्यक्रम के तहत दूसरे चरण के मतदान के लिये 21 जनवरी को चुनाव की अधिसूचना जारी हुयी थी। इन जिलों की 55 सीटों पर 586 उम्मीदवार चुनाव मैदान में हैं। जातीय समीकरणों को संतुष्ट करते हुये सभी दलों ने हर सीट पर फूंक फूक कर कदम रखते हुए उम्मीदवार तय किये हैं।
जमीनी हकीकत को भांपते हुये विभिन्न दलों ने 75 से ज्यादा मुस्लिम उम्मीदवार उतारे हैं। इनमें बसपा के सबसे ज्यादा 25, सपा रालोद गठबंधन के 18 और कांग्रेस के 23 मुस्लिम उम्मीदवार चुनाव मैदान में हैं। वहीं एआईएमआईएम के 15 मुस्लिम उम्मीदवार भी मुकाबले को दिलचस्प बना रहे हैं।
पहले चरण में पश्चिमी उत्तर प्रदेश के 11 जिलों की 58 विधानसभा सीटों पर 10 फरवरी को शांतिपूर्ण तरीके से मतदान संपन्न हो चुका है। पहले चरण में पिछले चुनाव की तुलना में तीन प्रतिशत कम अर्थात 60.17 प्रतिशत मतदान होने के बाद अब सभी की निगाहें दूसरे चरण के मतदान पर टिकी हैं।
लगभग एक महीने तक चले धुआंधार चुनाव प्रचार में सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के अलावा विपक्षी दल सपा, रालोद, बसपा और कांग्रेस सहित अन्य दलों ने पूरी ताकत झोंक दी। दूसरे चरण के मतदान वाली 55 सीटों में से लगभग 25 सीटों पर मुस्लिम मतदाता और 20 से अधिक सीटों पर दलित मतदाता हार जीत का फैसला करते हैं।
इस इलाके में 2017 में मोदी लहर ने दलित मुस्लिम समीकरणों के कारण अतीत में भाजपा के कमजोर होने के तिलिस्म को तोड़ते हुये 55 में से 38 सीटें जीती थीं। जबकि सपा को 15 और उसके सहयोगी दल कांग्रेस को दो सीटें मिली थीं। तब सपा के 15 में से 10 और कांग्रेस के दो में से एक मुस्लिम विधायक जीते थे। जानकारों की राय में दलित वोटों में विभाजन का सीधा असर यह हुआ कि पिछले चुनाव में इस इलाके से बसपा का खाता भी नहीं खुल सका।
इस चुनाव में किसानों की नाराजगी भाजपा की मुश्किलें बढ़ा सकती है। वहीं, विरोधी खेमे में सपा इस इलाके में अपने प्रदर्शन को श्रेष्ठता के शिखर पर ले जाने के लिये प्रयासरत है। इससे पहले 2012 में जब सपा ने सरकार बनायी थी, उस समय भी सपा को इस इलाके की इन 55 सीटों में से 27 सीटें मिली थीं, जबकि भाजपा मात्र आठ सीटें ही जीत सकी थी।

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