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यूपी चुनाव दूसरे चरण में दलित, जाट और मुस्लिम विशेष

UP Election news दूसरे चरण के मतदान वाले 11 में से सात जिलों, रामपुर, संभल, मुरादाबाद, सहारनपुर, अमरोहा, बिजनौर और नगीना में दलित मुस्लिम मतदाता ही उम्मीदवारों की किस्मत का फैसला करते हैं। सपा, बसपा और रालोद ने 2019 में लाेकसभा चुनाव मिलकर लड़ा था और इन सातों जिलों की सभी सात लोकसभा सीटें जीती थीं। इनमें सपा को रामपुर, मुरादाबाद और संभल तथा बसपा को सहारनपुर, नगीना, बिजनाैर और अमरोहा सीटें मिली थीं।
स्पष्ट है कि इस चुनाव में जातीय समीकरणों के आधार पर भाजपा के लिये पिछले चुनाव की तर्ज पर धार्मिक आधार और सुरक्षा के मुद्दे पर मतों का विभाजन कराना सबसे बड़ी चुनौती है।
सभी दलों के उम्मीदवारों की सूची से साफ हो गया है कि इस इलाके में चुनाव का दारोमदार दलित, जाट और मुस्लिम मतों के ध्रुवीकरण पर टिक गया है। जहां तक चुनाव प्रचार का सवाल है, तो कोरोना संक्रमण के खतरे के बीच हो रहे इस चुनाव में पिछले चुनावों की तुलना में प्रचार का शोर बहुत कम रहा। चुनाव आयोग ने कोविड प्रोटोकॉल के तहत रैली, जुलूस और रोड शो आदि पर पहले ही रोक लगा दी।
वर्चुअल प्रचार के मामले में भाजपा ने विपक्षी दलों को जरूर पीछे रखने की कोशिश की लेकिन 06 फरवरी से जनसभायें करने की अनुमति मिलने के बाद सपा, बसपा और कांग्रेस सीमित रोड शो एवं जनसभायें कर मतदाताओं तक अपने संदेश पहुंचाने में जुटे हैं। बसपा की अध्यक्ष मायावती शुरु में भले ही प्रचार से स्वयं दूर रही हों, लेकिन दो फरवरी से उन्होंने पश्चिमी उत्तर प्रदेश में तीन जनसभायें कर तमाम सीटों मुकाबले को त्रिकोणीय बना दिया है।
चुनावी मुद्दों की अगर बात की जाये तो किसान आंदोलन का गढ़ रहे पश्चिमी उत्तर प्रदेश में किसानों की समस्या सबसे बड़ा मुद्दा है। जानकारों की राय में मोदी सरकार भले ही तीन कृषि कानून वापस लेकर सबसे लंबे किसान आंदोलन को खत्म कराने में सफल हुयी हो, मगर किसानों का गुस्सा अभी भी भाजपा के लिये इस चुनाव की सबसे बड़ी चुनौती बन गया है।
किसानों के गुस्से को शांत करने के लिये प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, गृह मंत्री अमित शाह, मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और भाजपा अध्यक्ष जे पी नड्डा ने विकास कार्यों का इस इलाके में जमकर प्रचार किया। भाजपा ने शाह को पश्चिमी उत्तर प्रदेश में पार्टी का चुनाव प्रभारी बनाया है। यह चुनाव शाह के चुनावी प्रबंधन को भी कसौटी पर कसेगा।
इसके अलावा यह भी देखना दिलचस्प होगा कि अखिलेश के चुनावी प्रयोगों की लगातार विफलता पर इस चुनाव में विराम लग पाता है या नहीं। वह रालोद के जयंत चौधरी के साथ समूचे पश्चिमी उत्तर प्रदेश में लगातार सघन प्रचार कर किसानों के संकट को मुख्य मुद्दा बना रहे हैं। जिससे किसानों की नाराजगी भाजपा का विजय रथ रोक सके। इससे इतर जयंत चौधरी के लिये भी यह चुनाव इस बात की अग्निपरीक्षा बनेगा कि वह ‘जाट लैंड के चौधरी’ हैं या नहीं।
बसपा की भी कोशिश है कि पश्चिमी उत्तर प्रदेश में सपा रालोद गठबंधन और भाजपा की लड़ाई को त्रिकोणीय बना दिया जाये। इस क्षेत्र की दलित बहुल दो दर्जन सीटों पर अपने उम्मीदवार जिताने की बसपा की हरसंभव कोशिश जारी है। स्पष्ट है कि पिछले चुनाव में भी इस इलाके से एक भी सीट नहीं जीत सकी बसपा के लिये यह चुनाव समूचे सूबे में अपना वजूद बचाने की लड़ाई साबित हो रहा है।

 

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