आस्था के महापर्व छठ को प्रकृति पर्व के तौर पर मनाया जाता है। इस पर्व में बांस के बने सूप और डाला का विशेष महत्व है। इसे शुद्ध और पवित्र माना गया है। पिछले एक महीने से कारीगर सूप बनाने में जुटे हुए हैं। बांस से सूप बनाने वाले अधिकतर लोग महादलित समुदाय से हैं जो अपने हुनर का कमाल दिखा रहे हैं। इसके बाद भी कारीगरों का जीवन बदहाल है।
चार दिनों के छठ महापर्व की सोमवार से नहाय-खाय के साथ शुरुआत हो गई है। बांस के सूप पर पूजन सामग्री रख छठ व्रतियां सूर्योपासना के महापर्व पर अर्घ्य अर्पण करती है। मल्लिक परिवार के लोगों का ये पुश्तैनी काम है। लोक आस्था के पर्व का रंग सड़क किनारे भी दिखने लगा है। परिवार को दो वक्त की रोटी उपलब्ध कराने के लिए ये लोग छठ पर्व का खास इंतजार करते हैं। कच्चे हरे बांस को काटकर पहले उसे टुकड़ों में काटते हैं फिर उसकी पतली पतली खपच्चियां बनाई जाती है। फिर इसके बाद शुरू हो जाता सूप को आकार देने का काम।
सूप बना रहे कारीगर बमबम बसफोड़ ने कहा कि पिछले साल की तुलना इस बार बिक्री तो हो रही है लेकिन उचित दाम नहीं मिल पा रहा है।
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