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सपा लगातार दरकती जमीन और खिसकती सियासत

सपा के लिए वर्ष 2016 से चला राहूकाल समाप्त होने का नाम ही नहीं ले रहा है। पहले परिवार में फूट अब पार्टी में टूट के बाद 2017 में सत्ता गंवाना। फिर 2019 में लोक सभा के चुनाव में बुरी तरह हार। पार्टी मजबूत प्रमुख नेताओं को लगातार आरोप और जेल जाने का सिलसिला इससे पार्टी की छवि पर बुरा असर पड़ा है। एक तरफ लगातार मिल रही हार । और पार्टी के अंदर कुछ नेता जिनकी जनता में अपील है, यही वजह है कि सपा के भीतर बैचेनी है। आजम सपा के मंचों पर काफी मुखर रहे हैं इसी कारण उनके विवादित बयानों के बाद भी सपा उन पर हमेशा नरम ही रही है। हालांकि इधर कुछ वर्षाें से आज़म अपने आप में सपा पर सवाल बनते रहे है। सवाल ऐसा जिसे सपा के खुद हल करना आसान नहीं रहा है।
आज़म के बयानों ने सपा के मंच से जो ध्रुवीकरण की आग लगाई। सपा उसी आग में जली जा रही है। 2014 के लोकसभा और 2017 के विधानसभा के चुनावों में साहब ने जो बयान दिए उसी की गुरूवार को उन्हें सुनाई गई। मगर इस सब में अल्पसंख्यकों का मरहम भी पार्टी को मिला। मगर इस बड़े वोट शेयर के बावजूद भी पार्टी को कोई नतीजा नहीं मिला। इस बार भी उनकी सजा पर पार्टी की तरफ से कोई अधिकारिक बयान नहीं आया है। आज़म को इस मामले में अगर हाईकोर्ट से रहत मिल भी गई तो अभी उन पर आधा दर्जन से अधिक मामले हैं जिस पर उनकी पत्नी व बेटे भी कानून की तलवार लटक रही है। आज़म की रामपुर की लोकसभा सीट भी झीन चुकी है और इस बार विधानसभा सीट भी जाने के कागार पर है।

 

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